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दशहरा पूजा कब है, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं…

  • 20 February 2023

  • by SmartPuja Desk

दशहरा पर्व को विजय पर्व के रूप में भी जाना जाता है | प्राचीन कथा के अनुसार इस दिन माता दुर्गा ने राक्षसों के राजा महिषासुर का वध किया था | इसके अलावा इसी दिन भगवान राम ने रावण को मारा था | हमारे देश में दशहरा पर्व अलग अलग रीती रिवाजों के साथ मनाया जाता है और इस त्यौहार पर पूजा की जाती है | बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में इस दिन शस्त्रों के पूजन की परम्परा भी है | कई स्थानों पर इस दिन मेले लगते है और उत्तर भारत में इस दिन बुराई के प्रतीक रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते है | हिन्दू पंचांग के अनुसार यह बहुत ही शुभ तिथि है और इस दिन भगवान राम लक्षमण और माता सीता की पूजा की जाती है | इसके अलावा इस दिन माता दुर्गा की पूजा की जाती है | 

Table of Contents

  • 2023 में दशहरा पूजा कब है ?
    • Contact form
  • 2023 में दशहरा पूजा का शुभ मुहूर्त 
  • विजयादशमी पूजा का महत्व 
  • दशहरे का इतिहास  
  • दशहरा पूजा के लिए पूजन सामग्री 
  • दशहरा पूजा विधि
    • सीमोल्लंघन व शमीपूजन पूजा विधि 
    • दशहरे पर अपराजिता देवी पूजन 
  •  दशहरा पूजा के लाभ 
  • शस्त्र पूजन ( आयुध पूजन ) 
  • दशहरा से जुडी पौराणिक कहानी 
  • दशहरा पूजन की बुकिंग कैसे करें 

2023 में दशहरा पूजा कब है ?

Contact form

दशहरा पूजा भारतीय कैलेण्डर के अनुसार आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है | 2023 में आश्विन शुक्ल दशमी 23 अक्टूबर को है इसलिए दशहरा 24 अक्टूबर को मनाया जायेगा | 

2023 में दशहरा पूजा का शुभ मुहूर्त 

दशहरा तिथि 23 अक्टूबर 2023 को शाम 5 बजकर 44 मिनिट से शुरू होकर 24 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 14 मिनट तक रहेगी | 

पूजन के लिए विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 04 मिनिट से शुरू होकर 2 बजकर 49 मिनिट तक रहेगा |  

अमृत काल मुहूर्त 24 अक्टूबर को दोपहर 01 बजकर 19 मिनिट से लेकर दोपहर  03 बजकर 35 मिनिट तक रहेगा | 

विजयादशमी पूजा का महत्व 

विजयादशमी पूजा से पहले 9 दिन तक माँ भगवती के अलग अलग रूपों की पूजा की जाती है जिसे की नवरात्री कहा जाता है | नवरात्री के अगले दिन विजयादशमी का पूजन किया जाता है | ऐसा माना जाता है की नवरात्री के शुरुआती में माता सरस्वती सगुण रूप में आने के बाद सुप्तावस्था में चली जाती है | और विजयादशमी के दिन उनका पूजन एवं विसर्जन किया जाता है | इसके अलावा यदि इस दिन शमी या अश्मंतक के वृक्ष की पूजा की जाती है और अपराजिता देवी का पूजन किया जाता है | इस दिन माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान राम ने रावण का वध किया था इसलिए इस दिन विजय दिन के रूप में इस दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है | 

दशहरे का इतिहास  

प्राचीन समय में भगवान के पूर्वज महाराज रघु ने विश्व जीत यज्ञ किया | यज्ञ की सफलता के बाद उन्होंने सम्पूर्ण संपत्ति दान कर के वह जंगल में एक कुटिया बना कर रहने लगे | एक दिन उनके पास एक ब्राह्मण पुत्र आया जिसका नाम कौत्स था | उसने महाराज रघु से कहा की मैंने अपनी शिक्षा पूरी कर ली है और मुझे अपने गुरु को गुरु दक्षिणा में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं देनी है |  तब महाराज रघु ने सोचा की इतनी स्वर्ण मुद्राएं तो कुबेर के पास ही होगी | और ऐसा सोचकर उन्होंने कुबेर पर आक्रमण करने की तैयारी की | 

जब कुबेर को इसके बारे में पता चला तो वह तुरंत रघु के पास गए और उनसे विनती की की आपको इतने से काम के लिए मुझ पर आक्रमण करने की जरुरत नहीं है | और ऐसा कहकर उन्होंने शमी वृक्ष एवं कचनार के वृक्षों पर स्वर्ण मुद्राओं की बारिश की | राजा रघु ने वे सभी स्वर्ण मुद्राएं कौत्स को देनी चाही लेकिन कौत्स ने केवल गुरु दक्षिणा को दी जाने वाली 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं ली | तब राजा रघु ने उन स्वर्ण मुद्राओं में से 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं कौत्स को दी और ओर बाकि मुद्राएं सामान्य लोगों में बाँट दी | तब से ही दशहरे के दिन से अश्मंतक के पत्तों को सोने के रूप में एक दूसरे को बाँटने की परम्परा चली आ रही है | 

दशहरे का महत्व बताते हुए एक और कथा है जिसके अनुसार द्वापरयुग में जब पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास दिया गया था | कोई उनके शस्त्रों से उन्हें ना पहचान लें इसके लिए उन्होंने अपने शस्त्रों को शमी के वृक्ष पर छिपा दिया था | और अज्ञातवास समाप्त होने पर उन्होंने दशहरे के दिन ही शमी के वृक्ष से अपने शस्त्रों को प्राप्त किया था और इनका पूजन करने के बाद कौरवों से युद्ध किया था | इसलिए ही विजयादशमी यानि की दशहरे के दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है |  

दशहरा पूजा के लिए पूजन सामग्री 

  • गाय का गोबर 
  • दीपक 
  • धुप व बत्ती 
  • जनेऊ 
  • रोली, मोली चावल 
  • कुमकुम 
  • चन्दन 

दशहरा पूजा विधि

दशहरे पर 3 तरह की पूजा को महत्वपूर्ण बताया गया है ये है सीमोल्लंघन व शमीपूजन, अपराजितापूजन, और शस्त्र पूजन | आइये आपको इनकी पूजा किस तरह करनी है जानते है – 

सीमोल्लंघन व शमीपूजन पूजा विधि 

इस पूजन में आप जिस भी जगह रह रहे है उस ग्राम के देवता को तीसरे पहर में पालकी में बिठाकर ईशान कोण में गाँव की सीमा के बाहर ले जाया जाता है और उस स्थान पर शमी पेड़ की पूजा की जाती है और निम्न मन्त्र द्वारा प्रार्थना की जाती है | 

शमी शमयते पापं शमी लोहितकंटका | 
धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी 
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया | 
तत्र निर्विघ्नकत्रिम त्वं भव श्रीरामपूजिते || 
यदि शमी का वृक्ष ना हो तो अश्यन्तक वृक्ष की पूजा करनी चाहिए |   
अश्मंतक महावृक्ष महादोषनिवारण | 
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम ||
 

प्रार्थना के बाद शमी या अश्यन्तक के पेड़ पर जल चढ़ाना चाहिए | फिर रोली चावल से तिलक करना चाहिए | इसके उपरांत सुपारी अर्पित करनी चाहिए और दक्षिणा के रूप में ताम्बे के सिक्के रखने चाहिए | पुष्प अर्पित करने चाहिए एवं अंत में वृक्ष की 7 बार परिक्रमा करनी चाहिए | 

दशहरे पर अपराजिता देवी पूजन 

दशहरे पर अपराजिता पूजन का भी महत्व बताया गया है | इसके अनुसार यदि आप घर पर या शमी वृक्ष के नीचे अपराजिता देवी का पूजन करते है तो आपने मन में जो भी निश्चय किया होता है उसमें जरूर सफल होते है | अपराजिता देवी के पूजन के लिए सबसे पहले अष्टदल की आकृति बनाएं | अब अष्टदल के मुख्यबिंदु पर यानि की इसके बीचोंबीच माता अपराजिता देवी की स्थापना करें | इस अष्टदल के आठ बिंदु आठों लोकपाल का प्रतीक है और केंद्र बिंदु जो की भूगर्भ बिंदु भी कहलाता है देवी के अपराजिता रूप के उत्पत्ति का बिंदु है | माता को जल अर्पित करें | इसके बाद वस्त्र उपवस्त्र अर्पित करें | प्रसाद चढ़ाएं और निम्न प्रार्थना मन्त्र बोलें – 

हारेण तू विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला | 
अपराजिता भद्र्रता करोतु विजयं मम | 

देवी का अपराजिता रूप किसी से पराजित ना होने वाली माता का मारक रूप है और इसके द्वारा समस्त बुरी शक्तियों और नकारात्मकता का नाश होता है और जीवन में उन्नति और विजय मिलती है | पूजन करने से जो सारी शक्ति शमी के पत्तों में एकत्र हो जाती है अतः इन शमी के पत्तों को घर में रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास पूरे वर्ष भर रहता है | 

 दशहरा पूजा के लाभ 

  • दशहरा पूजा करने से आप जो भी कार्य करने का संकल्प लेते है उसमें आपको सफलता मिलती है | 
  • इस पूजा से घर में नेगेटिव एनेर्जी ख़त्म होती है और पोजेटिव एनर्जी का संचार होता है | 
  • दशहरे के दिन शमी पूजा करने से घर में समृद्धि आती है | 
  • इस दिन माता की पूजा करने से आपके सभी कष्टों का निवारण होता है और घर में सुख शांति बनी रहती है | 

शस्त्र पूजन ( आयुध पूजन ) 

दशहरे पूजन के दिन शस्त्र पूजन या उपकरण पूजन की परमपरा भी है | इस दिन ईशान कोण में स्थान को साफ़ करके एक सफ़ेद चद्दर बिछाएं और उस पर अपने शस्त्र या उपकरण रखें | अब माता दुर्गा का चित्र भी साथ में रखें | अब पहले माता दुर्गा को रोली, मोली चावल अर्पित करें | इसके बाद सभी शस्त्रों और उपकरणों को भी रोली चावल से तिलक लगाएं और उनके मोली बांधे | मोली बांधने के बाद भोग लगाएं और दक्षिणा अर्पित करें | इसके बाद गणेश जी और दुर्गा माता की आरती गाएं | आरती गाने के पश्चात हाथ में चावल और फूल लेकर दुर्गा  माता की फोटो एवं शस्त्र व उपकरणों पर पुष्पांजलि करें | 

दशहरा से जुडी पौराणिक कहानी 

दशहरा से मुख्य रूप से दो कहानी जुडी है पहली कहानी के अनुसार एक महाभयंकर दानव था जो की एक राक्षस और महिषी से पैदा हुआ था इसलिए वह कभी भी दानव और भैसे का रूप रख सकता था | उसने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा था | वरदान में उसने कहा की मुझे अमरता का वरदान दो | तब ब्रह्मा जी ने उससे कहा था की अमरता का वरदान तो मैं नहीं दे सकता तुम कोई और वरदान मांग लो | तब महिषासुर ने कहा की मुझे देवता, दानव, मनुष्य ना मार सके | तब ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर उसे वरदान दे दिया | 

वरदान पाकर वह सभी को सताने लगा | उसने स्वर्गलोक से भी सभी देवताओं को निकाल दिया तब सभी देवता भगवान विष्णु और भगवान शंकर के पास पहुंचे | ऐसे में उस समय सभी देवताओं के तेज से एक शक्ति ने जन्म लिया जो की माता दुर्गा थी | सभी देवताओं ने उन्हें अपने हथियार समर्पित किये | तब माता दुर्गा के साथ 9 दिन तक महिषासुर का युद्ध हुआ और दसवें दिन माता ने शेर पर सवार होकर उसका अंत कर दिया |  इस दिन के बाद से ही इस दिन को दशहरे के रूप में मनाया जाता है | 

दूसरी कहानी है जिसके बारे में बच्चा बच्चा जानता है | यह कथा त्रेतायुग की है जब भगवन राम अपने पिता की आज्ञा से 14 वर्ष वनवास में बिता रहे थे तब एक मायावी राक्षस रावण माता सीता को हरण करके ले गया | तब भगवान ने बंदरों की सहायता से जिसमें हनुमान, सुग्रीव, अंगद थे | इनकी सहायता से समुद्र पर पूल बनाकर लंका पहुंचे और वहां पर रावण से युद्ध हुआ | युद्ध में उन्होंने मेघनाथ और कुम्करण का वध किया | और अंत में दशहरे के दिन रावण का अंत किया और माता सीता को ससम्मान घर लेकर आये | रावण के वध के दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है और इस दिन भगवान राम और माता सीता की पूजा की जाती है और रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण का पुतला जलाया जाता है | 

दशहरा पूजन की बुकिंग कैसे करें 

पूजन करना हो तो उसके लिए कई तरह की तैयारियां करनी होती है | बड़े शहरों में लोगों के पास समय की कमी होती है इसकी वजह से कई बार चाहकर भी पूजा नहीं कर पाते है | इसलिए अब पूजन से सबंधित सभी समाधान के लिए स्मार्टपूजा है सर्वोत्तम विकल्प | स्मार्टपूजा के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से आप अपना पूजा पैकेज बुक कर सकते है जिसमें आपको मिलती है शुभ मुहूर्त जानने की सुविधा, पूजा के लिए पूजन सामग्री एवं पंडित जी की सुविधा | तो अगर आप भी दशहरा पूजा या अन्य कोई पूजा करवाना चाहते है तो ऑनलाइन बुकिंग करें या नीचे दिए गए नम्बरों पर कॉल करें | 

दशहरा पूजा से सबंधित जानकारी के लिए हमें 080-61160400 या व्हाट्सएप @ 9036050108 पर कॉल करें ।

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