कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र का अर्थ, महत्व और लाभ | शिव यजुर्वेद मंत्र व्याख्या

कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र का अर्थ, महत्व और लाभ
यजुर्वेद का पवित्र शिव मंत्र — संस्कृत पाठ, उच्चारण, शब्दार्थ, जाप विधि और लाभ।
1. कर्पूर गौरं करुणावतारं — संस्कृत पाठ
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ॥
Karpur Gauram Karunavataram Sansarsaram Bhujagendraharam |
Sadavasantam Hridayaravinde Bhavam Bhavani Sahitam Namami ||
2. शब्दार्थ और भावार्थ (Word-by-Word Meaning)
- 🕉️ कर्पूरगौरं – जो कर्पूर के समान श्वेत और निर्मल हैं (शिव की पवित्रता)।
- 🕉️ करुणावतारं – करुणा का अवतार; दया और करुणा के साक्षात स्वरूप।
- 🕉️ संसारसारम् – संसार का सार; समस्त सृष्टि का मूल तत्व।
- 🕉️ भुजगेन्द्रहारम् – जिनके गले में भुजंगराज (सर्प) का हार है; जो काल (मृत्यु) से परे हैं।
- 🕉️ सदा वसन्तं हृदयारविन्दे – जो सदैव भक्त के हृदय-कमल में निवास करते हैं।
- 🕉️ भवं भवानीसहितं नमामि – मैं माता भवानी (शक्ति) के साथ भगवान शिव को प्रणाम करता/करती हूँ।
3. मंत्र का सरल अर्थ
हे भगवान शिव—
जो कर्पूर के समान श्वेत और निर्मल हैं, करुणा के साक्षात अवतार हैं, जो इस संसार का सार हैं, जिनके गले में सर्पराज का हार है और जो माता भवानी के साथ मेरे हृदय में सदैव विराजमान हैं—आपको मेरा शत-शत प्रणाम।
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4. चुनिन्दा लाभ (Benefits of Chanting)
- मानसिक शांति: तनाव, चिंता और नकारात्मक विचारों का नाश होता है।
- आत्मिक बल: जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।
- शिव कृपा: भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार में सुख-शांति रहती है।
- एकाग्रता: यह मंत्र ध्यान (Meditation) के लिए अत्यंत प्रभावशाली है।

5. जाप विधि (How to Chant)
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। शिवजी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक-धूप जलाएँ।
- शांत मन से आँखें बंद करें और पहले 3 बार “ॐ नमः शिवाय” का जप करें।
- फिर “कर्पूर गौरं करुणावतारं” मंत्र का 11, 21 या 108 बार जाप करें।
- अंत में भगवान को भोग लगाएँ और आरती करें।
6. यजुर्वेद में इसका संदर्भ (Vedic Context)
यह श्लोक यजुर्वेद से लिया गया है। वेदों में शिव को केवल संहारक नहीं, बल्कि करुणा और कल्याण का स्रोत माना गया है।
“नमः शिवाय च शिवतराय च” (यजुर्वेद 16.41)
अर्थात् — हम उन शिव को नमन करते हैं जो स्वयं कल्याणस्वरूप हैं।“कर्पूर गौरं” श्लोक इसी भावना का विस्तार है। कर्पूर की सफेदी शिव की निर्मलता का प्रतीक है, और ‘करुणावतारं’ उनका दयामय स्वरूप है। यह मंत्र शिव की आरती (विशेषकर ‘जय शिव ओंकारा’) के बाद बोलने की परम्परा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
यह मंत्र शिव की करुणा और पवित्रता का प्रतीक है। इसे जपने से आत्मिक शुद्धि, सुरक्षा और मानसिक शांति मिलती है। यह शिवजी की आरती के अंत में गाया जाने वाला सबसे लोकप्रिय मंत्र है।
सामान्यतः यह मंत्र सुबह या शाम की आरती के बाद जपा जाता है। सोमवार, प्रदोष व्रत और सावन मास में इसका जप विशेष फलदायी माना जाता है।
हाँ, यह एक स्तुति मंत्र है जिसे भक्ति भाव से कोई भी जप सकता है। इसके लिए दीक्षा की आवश्यकता नहीं है।
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