कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र का अर्थ, महत्व और लाभ…
कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र का अर्थ, महत्व और लाभ
यजुर्वेद का पवित्र शिव मंत्र — संस्कृत पाठ, उच्चारण, शब्दार्थ, जाप विधि और लाभ संक्षेप में।
कर्पूर गौरं करुणावतारं — संस्कृत पाठ
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ॥
शब्दार्थ और भावार्थ (Word-by-Word Meaning)
- कर्पूरगौरं – जो कर्पूर के समान श्वेत और निर्मल हैं (शिव की पवित्रता)।
- करुणावतारं – करुणा का अवतार; दया और करुणा के स्वरूप।
- संसारसारम् – संसार का सार; समस्त सृष्टि का मूल तत्व।
- भुजगेन्द्रहारम् – जिनके गले में भुजंगराज (सर्प) का हार है; रावण और भय पर विजय का प्रतीक।
- सदा वसन्तं हृदयारविन्दे – जो सदैव भक्त के हृदय-कमल में विराजमान रहते हैं।
- भवं भवानीसहितं नमामि – मैं शिव और माता भवानी को प्रणाम करता/करती हूँ।
मंत्र का सरल अर्थ
हे भगवान शिव—
जो कर्पूर के समान श्वेत और निर्मल हैं, करुणा के अवतार हैं,
संसार के सार हैं, जिनके गले में सर्पराज का हार है
और जो माता भवानी के साथ हृदय में विराजमान हैं—आपको मेरा प्रणाम।
चुनिन्दा लाभ (Benefits of Chanting)
- विघ्न निवारण और नकारात्मकता का नाश।
- मानसिक शांति, एकाग्रता और स्पष्टता में वृद्धि।
- आत्मिक बल और आत्मविश्वास का विकास।
- भक्ति-भाव में वृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति।
- परिवार में सामंजस्य और जीवन में सकारात्मकता का आगमन।
प्रैक्टिस टिप: आरम्भ में 11 बार जपें; अभ्यास के साथ 108 बार करने का विधान है।
जाप विधि (How to Chant)
- स्नान कर शुद्ध होकर शिवलिंग या चित्र के सामने दीपक-धूप जलाएँ।
- शान्त मन से पहले 3 बार “ॐ नमः शिवाय” का जप करें।
- फिर कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र 11 बार या 108 बार जपें।
- जाप के पश्चात द्वार पर प्रसाद चढ़ाएँ और श्रीफल/दक्षिणा दें (यदि पूजा कर रहे हों)।
यजुर्वेद में इसका संदर्भ
यह श्लोक यजुर्वेद के साधारण पाठों में प्रचलित है और इसे शिव के करुणात्मक स्वरूप को प्रणाम करने हेतु पढ़ा जाता है। यजुर्वेद में शिव को ब्रह्म और करुणा का प्रतिरूप माना गया है।
🕉️ विस्तृत वेदिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Vedic & Historical Context)
यजुर्वेद में शिव-तत्त्व का उल्लेख अत्यंत प्राचीन और गूढ़ रूप में मिलता है।
यजुर्वेद के श्वेत यजुर्वेद (वाजसनेयी संहिता) और कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता) दोनों में भगवान रुद्र की स्तुति अनेक सूक्तों में की गई है।
विशेषतः “श्री रुद्रम्” अथवा “नमकम्-चमकम्” नामक भाग में रुद्र-देवता की उपासना का विस्तार मिलता है।“कर्पूर गौरं करुणावतारं” श्लोक की भावना भी उसी रुद्र-तत्त्व से जुड़ी है, जहाँ रुद्र को न केवल संहारक, बल्कि करुणा और शुद्धि का प्रतीक माना गया है।
यजुर्वेद में कहा गया है —“नमः शिवाय च शिवतराय च”
(यजुर्वेद 16.41)अर्थात् — हम उन शिव को नमन करते हैं जो स्वयं कल्याणस्वरूप हैं और जो सर्वोच्च कल्याण के भी कल्याणमय हैं।
इस भाव को ही “कर्पूर गौरं करुणावतारं” मंत्र में सरल काव्यरूप में प्रस्तुत किया गया है —
कर्पूर की श्वेतता शिव की निर्मलता का प्रतीक है, और करुणावतारं उनका दयामय स्वरूप।वैदिक परम्परा में शिव-पूजन को केवल संहार का प्रतीक नहीं, बल्कि नवसृजन (transformation) का आरम्भ माना गया है।
यही कारण है कि यह श्लोक केवल स्तुति नहीं, बल्कि एक ध्यान-मंत्र भी है —
यह साधक को मन की गहराई में “शिव-तत्त्व” का अनुभव कराता है।कालांतर में यह श्लोक शैव आगमों और शिव पुराण में भी उद्धृत हुआ और आज अधिकांश मंदिरों में मंगल-आरती के समय गाया जाता है।
इस प्रकार, “कर्पूर गौरं करुणावतारं” श्लोक वेदों की करुणा-प्रधान रुद्र-उपासना परम्परा का ही सार है —
जहाँ शिव केवल संहारक नहीं, बल्कि सृष्टि के पालनकर्ता और करुणा के साकार रूप हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र का क्या महत्व है?
उत्तर: यह मंत्र शिव की करुणा और पवित्रता का प्रतीक है। इसे जपने से आत्मिक शुद्धि, सुरक्षा और मानसिक शांति मिलती है।
प्रश्न 2: कब जपना चाहिए?
उत्तर: सामान्यतः यह मंत्र आरती के बाद या शिव पूजा में जपा जाता है। सोमवार, प्रदोष और श्रवण मास में इसका जप विशेष फलदायी माना जाता है।
प्रश्न 3: कितनी बार जपना चाहिए?
उत्तर: आरम्भ में 11 बार करना उत्तम है; परम्परा और समय के अनुसार 108 बार भी जपा जा सकता है।
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